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Wednesday, January 28, 2015

आम आदमी और चुनाव -

# आम आदमी और चुनाव

अभी कुछ  ही दिन बाद दिल्ली में चुनाव होने वाला है .  लोग अभी से ही कयास लगा रहे हैं की कौन पार्टी जीतेगी और कौन नहीं। सभी पार्टियां ऐड़ी चोटी का दम  लगा रही हैं चुनाव जितने के लिए. दिल्ली में हर तरह के लोग हैं और सबका अपना अपना विचार है, कोई कहता है की फलां पार्टी अच्छा काम करेगी उसे वोट देना चाहिए।
मै ऐसे ही अपने दोस्तों से बात कर रहा था (Whatsapp group ) में वहाँ भी सबके अपने अपने विचार सामने आये. किसी ने अपने तर्क  से साबित किया की मफलर मैन (केजरीवाल) सही है, आदर्शवादी है अवसरवादी नहीं तो उसे ही वोट देना चाहिए किसी ने अपने तर्क से किरन को बुरा भला कहा। अब किसे अच्छा कहे और किसे बुरा ये तो आने वाला चुनाव ही बताएगा।

मेरे राय में वोट उसे देना चाहिए जो आम जनता के हित में बात करे और आम जनता का काम करे , ना की उसे जो सिर्फ वादे करे और भूल जाये। मै ये नहीं कहता की ये पार्टी अच्छी है या ये पार्टी बुरी है , पार्टीयां बुरी  अच्छी नहीं हैं बल्कि उसमे जो लोग हैं वो बुरे और अच्छे हैं. इसीलिए अपना मत सोच समझ कर दे.


आम आदमी को चाहिए ही क्या, बिजली, पानी, सड़क, स्ट्रीट लाइट, अस्पताल और भ्र्स्टाचार मुक्त समाज। रोटी के लिए वो मेहनत तो करता ही है लेकिन जब ऐ सभी चीजे सही हो जाये तो सोने पे सुहागा हो जाये

आम आदमी चुनाव से बहुत घबराता है, सोचता है इस चुनाव के बाद महंगाई तो मुँह बा कर आएगी और मंथली बजट  संभालना मुश्किल हो जायेगा लेकिन ये बातें हमारे नेताओं समझ नहीं आती उन्हें तो कुर्सी और कुर्सी से मिलने वाले फायदे से मतलब होता है।

इसलिए आम आदमी की सहनशीलता को मत परखो। अब ये आपके हाथ में है की आप क्या सोचते हैं।

कुछ ग़लती से अगर ग़लत लिख दिया हो तो माफ़ करना।


~~ अभिषेक राहुल

Friday, January 23, 2015

फसबुकिया दोस्त -

 आज कल फेसबुक का क्रेज़ जैसे है न वैसे लगता है की सारी दुनिया इसी में समाई है ! लोग नए नए दोस्त  बनाते हैं, चैट भी करते हैं. सच में सोशल नेटवर्किंग ने दुनिया को कितना करीब ला दिया है।

वैसे मेरे एक दोस्त या यूँ कहे एक फसबुकिया दोस्त हैं.... शिवानंद पाण्डेय, वैसे हम सब दोस्त उन्हें "पारें जी " कहते हैं. प्यार का नाम है न कैसे छोड़ सकते है.। उन्होंने हाल ही  में नया नया मोबाइल फ़ोन ख़रीदे।।। अब उसका फंक्शन सीखना था तो वो आ गए हमारे पास, की ज़रा हमको बता दीजिये , अब बटन वाला मोबाइल होता तो  लेकिन ई टच वाला मोबाइल समझे  है, उनको मोबाइल से ज़यदा उत्सुकता फेसबुक सिखने थी।  मैंने जैसे तैसे करके उनको मोबाइल चलाना और  फेसबुक चलना सीखाया ,. लेकिन सिखाया क्या अपना पिंड किसी तरह छुड़ाया।  अब नवका मोबाइल और  फेसबुक लेके पारें जी पूरा गाँव घुम आये, चाचा , चाची  सबको  दिखाया , सब खुश। तभी पारें  ने फेसबुक पे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा , पारें जी पूरा खुश, दौड़ के मेरे पास आये  बोले अरे पता नहीं ये कौन है हम तो जानते  भी नहीं और ई हमसे दोस्ती करना चाहता है, क्या करूँ , मैंने कहा पारें जी घबराइये नहीं फेसबुक अनजान लोग भी दोस्त  हैं. तो इनका रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लीजिये , अब  पारें जी ने रिक्वेस्ट एक्सेप्ट किया तो देखा की कोई लड़की का प्रोफाइल है, फिर क्या था पारें जी लग गए पूरा चाटियाने (चैट करने )  उधर से भी रिस्पांस अच्छा ही आ रहा था, अब पारें जी  ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था, आसमान सर पर लेकर घूम रहे थे। कुछ दिन तक सिलसिला ऐसा ही चला . कुछ दिन बाद उन्हें पता चला की वो कोई लड़की नहीं थी वो तो गाँव के ही कुछ मसखरी करने वाले लड़के थे जो बिन ब्यहे पारें जी  रहे थे.

पारें जी का दिल टूट गया , एक  तो उनकी शादी नहीं हुई और गाँव लड़के भी ,,,,,,मुझे उनसे हमदर्दी है , लड़को  से नहीं।,,पारें जी  से. जैसे तैसे मैंने उनको समझाया की पारें जी दुनिया ऐसी ही है , अगर आप किसी को मज़े लेने देंगे दुनिया और चटखारे लेकर मज़े लेगी। 

मेरा पहला ब्लॉग है - अपना विचार ज़रूर दें।

आपका
अभिषेक राहुल - New Delhi